शिवभक्ति की दिव्यता और साहस की पराकाष्ठा पर खड़े दो शिवसैनिक
श्रीखंड महादेव की हिमशिखरों पर रच आए अमर कथा

इंदौर। देपालपुर सावन मास के अलौकिक आलोक में, जब पूरा ब्रह्मांड शिवमय हो उठा, देपालपुर के केदार पंड्या और लखनऊ के यश वाजपेई ने शिवभक्ति की उस पराकाष्ठा को छुआ, जहाँ सांस लेना भी तपस्या बन जाता है, और हर कदम मृत्यु की छाया में डोलता है। इन दोनों युवाओं ने पहले 3 जुलाई को अमरनाथ की पवित्र गुफा में हिमलिंग के दर्शन कर अपनी भक्ति की अर्चना अर्पित की, और उसी प्रचंड आस्था की अग्नि में तपते हुए श्रीखंड महादेव के हिमालयी आँगन की ओर प्रस्थान कर दिया। श्रीखंड महादेव पंच कैलाशों में एक वह दिव्य शिखर है, जो हिमाचल की बर्फीली छाती पर विराजमान है, और जिसे भगवान शिव का साक्षात निवास कहा जाता है। 17,000 फीट की ऊँचाई पर बर्फ की चट्टानों से घिरे इस शिखर तक पहुँचने की राह केवल यात्रा नहीं, बल्कि साधना है वह साधना, जहाँ हड्डियाँ काँपती हैं, सांसें जम जाती हैं, और मनुष्य अपनी सीमाओं के पार स्वयं को परखता है। केदार और यश की इस यात्रा ने सावन की पवित्रता को नए अर्थ दे दिए। छः दिनों तक लगातार मौत से पंजा लड़ाते हुए इन्होंने बर्फ की खामोश चादरों पर पाँव टिकाए, जहाँ एक तरफ अथाह खाइयाँ थीं और दूसरी ओर हिमखंडों से फिसलती मृत्यु की सरसराहट। पहाड़ धँसे, बादल फटे, नाले उफने, चट्टानें भरभराकर गिरीं, किंतु इन युवाओं की भक्ति हिमालय से भी ऊँची और अडिग रही। यह यात्रा केवल शारीरिक परिश्रम का नहीं, बल्कि आत्मा के तप का पर्व है। हर कदम पर ऑक्सीजन की कमी, कड़कड़ाती हवाओं का प्रहार, और बर्फ की धार पर चलते समय दिल की धड़कनों का तेज शोर यह सब मानो शिव के आशीर्वाद की अग्निपरीक्षा थी। और इन दोनों शिवभक्तों ने वह परीक्षा पूरे साहस और श्रद्धा से उत्तीर्ण की। श्रीखंड कैलाश पर 75 फीट ऊँचा शिवलिंग, हिमालय की विराटता में दिव्य आभा बिखेरता है। कहा जाता है, यहाँ भगवान गणेश और कार्तिकेय की प्राकृतिक आकृतियाँ स्वयं प्रकृति ने गढ़ी हैं। ऐसी मान्यता भी है कि यहाँ अर्पित भोग रहस्यमयी गुफाओं में लुप्त हो जाता है, जैसे भगवान स्वयं उसे स्वीकार कर लेते हों। केदार और यश के लिए यह यात्रा मात्र पहाड़ पार करना नहीं थी यह उनके भीतर के ‘शिव’ से मिलने की यात्रा थी। जितनी कठिन चढ़ाई, उससे कई गुना कठिन उतराई, हर जगह बर्फ की परतें और बर्फ के नीचे छिपी मौत की खाईयाँ। किंतु हर घड़ी इनके होंठों पर बस एक ही मंत्र था “हर हर महादेव।” इनकी यात्रा की हर घड़ी में शिव के प्रति अगाध भक्ति और पर्वतों को ललकारता मानवीय साहस साफ झलकता है। आज ये दोनों शिवभक्त उन हजारों श्रद्धालुओं के लिए जीवंत प्रेरणा बन चुके हैं, जो श्रीखंड महादेव की कठिनतम यात्रा के नाम से ही काँप जाते हैं। इन्होंने सिद्ध कर दिया कि शिवभक्ति केवल मंदिरों में नहीं, बल्कि मृत्यु की आँखों में आँखें डालकर, हिमालय जैसे दुर्गम मार्गों पर चलकर ही अपने शिखर पर पहुँचती है। इनकी कहानी न केवल भक्ति की विजयगाथा है, बल्कि यह बताती है कि जहाँ आस्था हिमालय से टकराती है, वहाँ असंभव शब्द अर्थहीन हो जाता है। आज देपालपुर से लेकर लखनऊ तक हर शिवभक्त के मन में एक ही गर्जना गूँज रही है – हर हर महादेव !